Friday 17 February 2017

New sayari collection

दर्द कागज़ पर मेरा बिकता रहा*
*मैं बैचैन था रातभर लिखता रहा !!*
*छू रहे थे सब बुलंदियाँ आसमान की*
*मैं सितारों के बीच, चाँद की तरह छिपता रहा !!*
*दरख़्त होता तो, कब का टूट गया होता*
*मैं था नाज़ुक डाली, जो सबके आगे झुकता रहा !!*
*बदले यहाँ लोगों ने, रंग अपने-अपने ढंग से*
*रंग मेरा भी निखरा पर, मैं मेहँदी की तरह पीसता रहा !!*
*जिनको जल्दी थी, वो बढ़ चले मंज़िल की ओर*
*मैं समन्दर से राज गहराई के सीखता रहा !!*

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